केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू द्वारा दलाई लामा के उत्तराधिकारी चयन को लेकर दिए गए समर्थनात्मक बयान के बाद, भारत और चीन के बीच कूटनीतिक तल्खी बढ़ गई है। रिजिजू ने स्पष्ट कहा कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी चयन में चीन की कोई भूमिका नहीं हो सकती। उनके इस बयान पर चीन की कड़ी प्रतिक्रिया सामने आई, हालांकि बाद में बीजिंग में हुई मीडिया ब्रीफिंग की आधिकारिक प्रतिलिपि से इस बयान पर आपत्ति को हटा दिया गया।
भारत सरकार ने शुक्रवार को स्पष्ट किया कि दलाई लामा की उत्तराधिकारी योजना एक धार्मिक और आस्था से जुड़ा मामला है, जिसमें सरकार की कोई आधिकारिक स्थिति नहीं है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, “हमने उनकी संस्था से जुड़े जारी बयान की रिपोर्ट देखी है। भारत सरकार आस्था और धर्म से जुड़े मामलों में कोई पक्ष नहीं लेती। भारत में सभी धर्मों की स्वतंत्रता को हमने हमेशा प्राथमिकता दी है और आगे भी देंगे।”
इस बीच, तिब्बत की निर्वासित सरकार ने चीन की ‘गोल्डन अर्न परंपरा’ को खारिज कर दिया है, जिसके तहत चीन दलाई लामा के उत्तराधिकारी को चुनने का दावा करता है। दलाई लामा के अनुयायियों का कहना है कि उनके उत्तराधिकारी का चयन केवल दलाई लामा ट्रस्ट द्वारा ही किया जाएगा।
भारत-चीन संबंधों की वर्तमान स्थिति:
बीते नौ महीनों में भारत और चीन के संबंधों में कुछ हद तक सुधार देखने को मिला है, विशेषकर लद्दाख सीमा विवाद को सुलझाने के बाद। इसके बाद उच्च स्तरीय द्विपक्षीय मुलाकातें फिर शुरू हुईं हैं:
🔹 विदेश मंत्री एस. जयशंकर 13 जुलाई को शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के विदेश मंत्रियों की बैठक में शामिल होने चीन जा सकते हैं — यह 2022 के बाद पहली द्विपक्षीय विदेश मंत्री यात्रा होगी।
🔹 रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह पिछले महीने SCO की रक्षा मंत्रियों की बैठक में चीन गए थे।
🔹 राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल भी दो बार चीन जा चुके हैं।
🔹 चीनी विशेष प्रतिनिधि वांग यी इस माह भारत यात्रा पर आ सकते हैं।
हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आगामी सितंबर में चीन में होने वाली SCO शिखर सम्मेलन में भागीदारी पर भारत ने अभी तक कोई पुष्टि नहीं की है।
रिजिजू की सफाई:
अपने बयान पर उठे विवाद के बाद किरेन रिजिजू ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा, “मैं एक अनुयायी के रूप में बोल रहा था, भारत सरकार की ओर से नहीं। दलाई लामा जी के अनुयायियों की यही भावना है कि उनके उत्तराधिकारी का निर्णय स्वयं दलाई लामा द्वारा ही लिया जाए। इसमें न भारत सरकार को कुछ कहना है और न चीन को।”
निष्कर्ष:
भारत ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि धार्मिक विश्वासों के मामलों में उसकी कोई आधिकारिक भूमिका नहीं होती, वहीं चीन तिब्बती मामलों पर विदेशी हस्तक्षेप न करने की चेतावनी दे रहा है। भारत का संतुलित रुख क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने के लिए अहम माना जा रहा है, खासकर ऐसे समय में जब साझेदारी और संवाद के संकेत दोनों देशों की ओर से देखे जा रहे हैं।