मध्य प्रदेश में खाद संकट से किसान परेशान, काला बाज़ारी और जमाखोरी के आरोप

मध्य प्रदेश में चल रहे खाद संकट ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है। किसानों का आरोप है कि खाद आवंटन की जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा रही है, जिससे जमाखोरी और काला बाज़ारी को बढ़ावा मिल रहा है। सरकार द्वारा खाद वितरण प्रणाली को डिजिटल किए जाने के बावजूद किसानों को यह नहीं पता चल पा रहा है कि उनके नाम पर कितना खाद आवंटित हुआ है।

भारतीय किसान संघ के महासचिव राहुल धूत ने कहा, “पांच साल पहले तक यह डेटा सार्वजनिक होता था, लेकिन अब उसकी पारदर्शिता खत्म हो चुकी है। इससे काला बाज़ारी के रास्ते खुल गए हैं।”

राज्य के कई ज़िलों—जैसे बड़वानी, खंडवा, शिवपुरी, अशोकनगर, बुरहानपुर, खरगोन, नर्मदापुरम और विदिशा—में सहकारी समितियों पर लंबी कतारें और खाद की भारी कमी देखी जा रही है, जबकि खुले बाजार में महंगे दामों पर खाद आसानी से उपलब्ध है।

खरीफ सीजन के लिए मध्य प्रदेश ने 36 लाख मीट्रिक टन खाद वितरण का लक्ष्य तय किया है, जिसमें 17.40 लाख मीट्रिक टन यूरिया, 5 लाख मीट्रिक टन डीएपी, 6.5 लाख मीट्रिक टन एसएसपी, 5,000 मीट्रिक टन एमओपी और 86,000 मीट्रिक टन एनपीके शामिल हैं। हालांकि, अब तक राज्य को केवल 10 लाख मीट्रिक टन यूरिया और 3 लाख मीट्रिक टन डीएपी की आपूर्ति मिली है, यह जानकारी मार्कफेड के महाप्रबंधक बी.एस. खेडकर ने दी।

खेडकर का कहना है कि इस कमी का एक कारण किसानों द्वारा आगामी रबी सीजन के लिए खाद का स्टॉक जमा करना है, साथ ही खरीफ में मक्का की खेती का रकबा बढ़ना भी एक वजह है।

वहीं किसान नेता केदार सिरोही ने इन तर्कों को खारिज करते हुए कहा, “अगर वाकई में कमी है, तो खुले बाजार में ऊंचे दाम पर खाद कैसे मिल रही है? यह पूरी तरह से व्यवस्था की विफलता है। वितरण प्रक्रिया में कोई पारदर्शिता नहीं है।”

कृषि विभाग ने किसानों को डीएपी के विकल्प के रूप में सिंगल सुपर फॉस्फेट (SSP) के उपयोग की सलाह दी है, लेकिन ज्यादातर किसान इस विकल्प को अपनाने से हिचकिचा रहे हैं।

जैसे-जैसे बोवाई का समय आगे बढ़ रहा है, किसान संगठनों ने मांग की है कि सरकार तत्काल सुधारात्मक कदम उठाए और खाद आवंटन संबंधी डेटा को फिर से सार्वजनिक किया जाए, ताकि जमाखोरी और काला बाज़ारी पर रोक लगाई जा सके।

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