भोपाल का अदमपुर छावनी लैंडफिल बना जनस्वास्थ्य आपातकाल, CPCB ने सुप्रीम कोर्ट में पेश की गंभीर रिपोर्ट

भोपाल के अदमपुर छावनी लैंडफिल स्थल को लेकर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने सुप्रीम कोर्ट में एक शपथपत्र दाखिल किया है, जिसमें इसे एक जनस्वास्थ्य आपातकाल बताया गया है। रिपोर्ट में लैंडफिल के एक किलोमीटर के दायरे में हवा और भूजल के जहरीले स्तर तक प्रदूषित होने की बात कही गई है।

BMC की लापरवाही पर फटकार

सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान CPCB ने भोपाल नगर निगम (BMC) को कचरा प्रबंधन और आग रोकथाम में भारी लापरवाही के लिए आड़े हाथों लिया। यह रिपोर्ट 12 जून को की गई निरीक्षण के आधार पर तैयार की गई थी, जिसमें 12 लाख टन से अधिक बिना प्रक्रिया वाला कचरा, बार-बार लगने वाली आग और खतरनाक स्तर तक दूषित भूजल पाया गया।

15 महीनों में 18 आग की घटनाएं

पर्यावरणविद् सुभाष सी. पांडे ने बुधवार को रिपोर्ट के निष्कर्ष साझा करते हुए बताया कि अप्रैल 2024 से जुलाई 2025 के बीच लैंडफिल में 18 बार आग लगी, जिनमें से कई घटनाएं दर्ज तक नहीं की गईं। पास के सात शहरी गांवों के निवासी जहरीली हवा और दूषित पेयजल से प्रभावित हैं। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भूजल में आयरन की मात्रा सुरक्षित सीमा से 100 गुना अधिक पाई गई है।

लीचेट से भूजल विषाक्त

कचरे से रिसने वाला जहरीला तरल (लीचेट) जमीन में समा गया है, जिससे आसपास के गांवों का भूजल गंभीर रूप से प्रदूषित हो गया है। पांडे ने बताया कि इस गंभीर स्थिति को लेकर मार्च 2023 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) में याचिका दायर की गई थी, जिसके बाद जुलाई 2023 में NGT ने BMC पर 1.8 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था। लेकिन BMC ने इस पर अमल करने के बजाय सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

अवैज्ञानिक कचरा निस्तारण

CPCB की रिपोर्ट के अनुसार, भोपाल प्रतिदिन लगभग 850 टन कचरा उत्पन्न करता है, लेकिन नगर निगम सिर्फ 420 टन ही वैज्ञानिक रूप से प्रोसेस करता है। बाकी का कचरा बिना प्रक्रिया के सीधे डंप किया जाता है, जिससे मिट्टी, हवा और जल स्रोत बुरी तरह प्रदूषित हो रहे हैं। लैंडफिल साइट में वैज्ञानिक कचरा प्रबंधन के न्यूनतम मानक तक मौजूद नहीं हैं।

आग रोकने की व्यवस्था सिर्फ कागजों पर

CPCB ने रिपोर्ट में खुलासा किया कि BMC के पास फायर फाइटिंग उपकरण, बोरवेल्स और 3.5 लाख लीटर पानी की टंकी होने के बावजूद, 2022 में जारी दिशा-निर्देशों के अनुरूप आग रोकथाम की बुनियादी व्यवस्थाएं तक लागू नहीं की गईं। निरीक्षण दल ने पाया कि गर्मियों के महीनों में आग लगने की घटनाएं एक पैटर्न के रूप में सामने आई हैं, लेकिन इसके बावजूद गैस डिटेक्टर, तापमान सेंसर और निगरानी प्रणाली तक नहीं लगाई गईं

सुप्रीम कोर्ट की सख्ती

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, भोपाल को निर्देश दिए हैं कि वे प्रभावित क्षेत्रों में स्वास्थ्य प्रभावों का आकलन करें और जरूरतमंद लोगों को चिकित्सा सहायता सुनिश्चित करें।

यह मामला न सिर्फ पर्यावरणीय संकट को उजागर करता है, बल्कि शहरी प्रशासनिक लापरवाही का एक खतरनाक उदाहरण भी बन गया है।

Switch Language »