सीपीआई (माओवादी) के शीर्ष नेता बसवराजू के खात्मे के साथ संगठन को ‘सिरविहीन’ कर देना किसी एक झटके में नहीं हुआ, बल्कि यह केंद्र और छत्तीसगढ़ सरकार के बीच समन्वित, खुफिया-आधारित कार्रवाइयों की एक लंबी श्रृंखला का परिणाम है, जिसने दिसंबर 2023 में राज्य में बीजेपी सरकार बनने के बाद तीव्र गति पकड़ी। गृह मंत्री अमित शाह ने 2019 में ही वामपंथी उग्रवाद को जड़ से खत्म करने का संकल्प लिया था, जिसका उद्देश्य था कि सुरक्षा बल उन इलाकों में प्रवेश करें जो अब तक प्रशासन और पुलिस से अछूते रहे हैं, और वहाँ के स्थानीय लोगों को केंद्र की योजनाओं से जोड़ें।
बिहार और झारखंड में माओवादियों के मजबूत गढ़ पहले ही काफी हद तक खत्म किए जा चुके थे। इसके बाद अगला तार्किक कदम था अबूझमाड़ क्षेत्र — माओवादियों की सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली शरणस्थली। 2023 के बाद से केंद्र की एजेंसियों जैसे कि सीआरपीएफ, आईबी और बीएसएफ तथा छत्तीसगढ़ पुलिस और उसकी विशिष्ट इकाइयों जैसे जिला रिजर्व गार्ड (DRG) और स्पेशल टास्क फोर्स (STF) के बीच अभूतपूर्व समन्वय देखने को मिला।
पिछले डेढ़ वर्षों में एक सुव्यवस्थित रणनीति के तहत माओवादी संगठन के वरिष्ठ, मध्यम और निचले स्तर के नेतृत्व को निशाना बनाते हुए उनके प्रभाव क्षेत्र को सिमटाकर अंतरराज्यीय सीमा क्षेत्रों तक सीमित कर दिया गया। केवल दिसंबर 2023 से 21 मई 2025 तक, छत्तीसगढ़ में 401 माओवादी मारे गए, 1429 गिरफ्तार किए गए और 1355 ने आत्मसमर्पण किया। सुरक्षा बलों द्वारा 2019 से अब तक 555 फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस (FOBs) स्थापित किए गए हैं ताकि माओवादियों को दोबारा प्रभाव जमाने से रोका जा सके और विकास की प्रक्रिया को तेज किया जा सके।
माओवादियों की लगातार होती क्षति के बीच अब वे संघर्षविराम और वार्ता की अपील कर रहे हैं, लेकिन केंद्र सरकार का लक्ष्य स्पष्ट है — मार्च 2026 तक नक्सलवाद का पूर्ण उन्मूलन। इसी दिशा में ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट (22 अप्रैल – 11 मई) और नारायणपुर ऑपरेशन जैसे निर्णायक अभियानों ने कुल 58 माओवादियों को ढेर कर दिया, जिनमें शीर्ष नेता बसवराजू भी शामिल थे।
ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट के तहत माओवादी नेताओं और PLGA की सबसे ताकतवर बटालियन नं. 1 को छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा स्थित कर्रगुट्टालू पहाड़ियों से खदेड़ दिया गया। वहीं नारायणपुर ऑपरेशन, जो बुधवार को अंजाम दिया गया, माओवादियों के लिए अब तक की सबसे बड़ी चोट साबित हुआ। खास बात यह रही कि DRG की इस कार्रवाई में वे पूर्व नक्सली शामिल थे जिन्होंने आत्मसमर्पण कर सुरक्षाबलों का हिस्सा बन देशसेवा का संकल्प लिया और आखिरकार उसी नेता बसवराजू को ढेर कर दिया, जिसकी कभी वे कमान में लड़ते थे।
यह माओवादी आंदोलन के अंत की एक निर्णायक कहानी है — जिसमें रणनीति, समन्वय, साहस और जनसमर्थन सभी की भूमिका रही।