भारत में मातृत्व स्वास्थ्य को लेकर जारी Special Bulletin on Maternal Mortality (2020-22) में खुलासा हुआ है कि मध्य प्रदेश की मातृ मृत्यु दर (MMR) 2019-21 के 173 से घटकर अब 159 पर आ गई है। यह गिरावट राज्य के लिए सकारात्मक संकेत है, लेकिन चिंता की बात यह है कि देशभर में यह दर अब भी सबसे अधिक है — जबकि राष्ट्रीय औसत 88 है।
गंभीर हालात और असमानताएं
नमूना पंजीकरण प्रणाली (SRS) के आंकड़ों के अनुसार, मध्य प्रदेश की महिलाओं में जीवनकाल के दौरान मातृ मृत्यु का जोखिम 0.47% है — जो देश में सबसे अधिक है। साथ ही, राज्य की मातृ मृत्यु दर 14 प्रति लाख दर्ज की गई है।
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि राज्य की महिलाओं को गर्भावस्था और प्रसव के दौरान अब भी गंभीर स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करना पड़ता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह केवल चिकित्सा नहीं, बल्कि सामाजिक व संरचनात्मक समस्याओं का भी परिणाम है।
स्वास्थ्य सेवाओं की खामियां
जन स्वास्थ्य अभियान इंडिया (JSAI) के प्रतिनिधि अमूल्य निधि के अनुसार, मध्य प्रदेश में मातृत्व स्वास्थ्य से जुड़े संकटों की जड़ें कई स्तरों पर फैली हैं। इनमें शामिल हैं:
- स्वास्थ्य ढांचे की कमी, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में
- पूर्व प्रसव जांच (ANC) सेवाओं की अपर्याप्तता
- संस्थागत प्रसव सुविधाओं और आपातकालीन प्रसूति सेवाओं की कमी
- सामाजिक-आर्थिक बाधाएं, जैसे गरीबी, अशिक्षा और लिंगभेद
निधि ने यह भी रेखांकित किया कि मातृ मृत्यु की पारदर्शी ऑडिट प्रणाली की गैरमौजूदगी से हालात और जटिल हो जाते हैं।
तत्काल रणनीतिक हस्तक्षेप की आवश्यकता
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अन्य राज्यों की तुलना में मध्य प्रदेश अब भी इतना पीछे है, तो यह केवल आँकड़ों का फर्क नहीं, बल्कि नीतियों की विफलता भी है।
इस स्थिति से निपटने के लिए आवश्यक कदमों में शामिल हैं:
- मातृत्व स्वास्थ्य कार्यक्रमों का पुनर्गठन और विस्तार
- जागरूकता अभियान, जिससे महिलाएं समय पर जांच और प्रसव की सुविधा लें
- सभी तबकों तक सस्ती और सुलभ स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता
- स्वास्थ्यकर्मियों की नियमित प्रशिक्षण और निगरानी
निष्कर्ष:
राज्य सरकार को चाहिए कि वह मातृत्व स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए, योजनाओं को ज़मीनी हकीकत से जोड़े। अमूल्य निधि के अनुसार, इन सुधारों के बिना “बचाई जा सकने वाली मौतें” होती रहेंगी, जो किसी भी समाज के लिए स्वीकार्य नहीं हो सकतीं।