भोपाल में बनेगा मध्यप्रदेश का पहला ग्रीन वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट, जैव ईंधन बनेगा हरे कचरे से

सतत कचरा प्रबंधन की दिशा में एक अहम कदम उठाते हुए भोपाल अब मध्यप्रदेश का पहला ऐसा शहर बनने जा रहा है जहाँ ग्रीन वेस्ट (हरे कचरे) से बायोमास ब्रिकेट्स बनाने का प्रोसेसिंग प्लांट स्थापित किया जाएगा। यह प्लांट भोपाल नगर निगम (BMC) द्वारा पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल के तहत करीब 8 करोड़ रुपये की लागत से तैयार किया जाएगा।

हर दिन 5 टन हरा कचरा

नगर निगम के अधिकारियों के अनुसार, भोपाल में प्रतिदिन करीब 5 टन ग्रीन वेस्ट उत्पन्न होता है, जिसमें पत्तियाँ, लकड़ियाँ और फूल जैसे जैविक अपशिष्ट शामिल होते हैं। अभी तक इस कचरे के निपटारे की कोई व्यवस्थित व्यवस्था नहीं है, जिससे यह नगर निगम के लिए एक चुनौती बना हुआ है।

PPP मॉडल के अंतर्गत योजना

इस परियोजना के अंतर्गत चयनित निजी कंपनी पूरे प्लांट की लागत वहन करेगी, जबकि BMC जमीन और पूरे शहर से इकट्ठा किया गया हरा कचरा प्रदान करेगा। निगम तैयार बायोमास ब्रिकेट्स के वितरण और मार्केटिंग में भी सहयोग करेगा। संभावित खरीदारों में सांची दुग्ध संघ प्रमुख रूप से शामिल है, जिससे परियोजना को आय का स्थायी स्रोत मिलने की संभावना है।

बायोडिग्रेडेबल उत्पादों की भी होगी तैयारी

इसके अतिरिक्त एक और यूनिट पास में स्थापित की जा रही है, जिसमें हरे कचरे से लकड़ी, फूल और पत्तियों से बायोडिग्रेडेबल उत्पाद तैयार किए जाएंगे। इस यूनिट का संचालन एस्ट्रोनॉमिकल इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड द्वारा किया जाएगा और यह भी PPP मॉडल के तहत कार्य करेगी। अधिकारियों का कहना है कि भोपाल की तुलना में इंदौर में प्रतिदिन करीब 30 टन ग्रीन वेस्ट उत्पन्न होता है, जिससे इस योजना को अन्य शहरों में भी विस्तार की संभावनाएँ मिल सकती हैं।

एक माह में शुरू होगा कार्य

BMC कमिश्नर हरेंद्र नारायण ने फ्री प्रेस से बातचीत में बताया कि टेंडर प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और प्लांट का कार्य एक माह के भीतर शुरू हो जाएगा। उन्होंने कहा, “यह प्लांट न केवल शहर में ग्रीन वेस्ट का बोझ कम करेगा बल्कि रॉयल्टी के रूप में आय का स्रोत भी बनेगा।” इसके साथ ही अधिकारी चंडीगढ़ का दौरा भी करने की योजना बना रहे हैं, जहाँ इसी प्रकार का एक प्लांट पहले से संचालित है।

क्या होते हैं बायोमास ब्रिकेट्स?

बायोमास ब्रिकेट्स ग्रीन वेस्ट से तैयार होने वाला एक पर्यावरण अनुकूल जैव ईंधन है। यह कोयले की जगह खाना पकाने, उद्योगों में हीटिंग और बिजली उत्पादन में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें कोयले या लकड़ी की तुलना में कम हानिकारक गैसें निकलती हैं, जिससे यह पर्यावरणीय और आर्थिक दृष्टिकोण से एक बेहतर विकल्प बन जाता है।

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