तकनीक से बदली तस्वीर: जल गंगा संवर्धन अभियान में एमपी बना देश का पहला राज्य, वैज्ञानिक पद्धति से तय हो रहे जलस्रोतों के स्थान

मध्य प्रदेश ने जल गंगा संवर्धन अभियान के तहत जल स्रोतों के निर्माण में तकनीकी नवाचार की मिसाल पेश की है। राज्य देश का पहला और एकमात्र राज्य बन गया है जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), रियल-टाइम डेटा एनालिटिक्स और सैटेलाइट व मैपिंग टूल्स का उपयोग करके जलाशयों के स्थान तय कर रहा है। यह अभियान मनरेगा (MNREGS) के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में जल स्रोतों के निर्माण और भूजल स्तर सुधारने के लिए चलाया जा रहा है।

अब सूखे नहीं रहेंगे तालाब

अधिकारियों के मुताबिक, इन वैज्ञानिक और तकनीकी हस्तक्षेपों से यह लगभग तय हो गया है कि अब बनाए जाने वाले जलाशय सूखे नहीं रहेंगे। पहले तालाब व कुएं गलत स्थान, ढलान या जल रिचार्ज बिंदुओं की जानकारी के अभाव में सूखे रह जाते थे। अब ऐसा नहीं होगा, क्योंकि हर प्रस्ताव SIPRI (Software for Identification and Planning of Rural Infrastructure) से सत्यापित होता है। यह सॉफ्टवेयर गांव स्तर पर खसरा नंबर तक की टोपोग्राफिकल जानकारी के आधार पर उपयुक्त स्थान तय करता है।

क्लिक में तय हो रहा जल स्रोत

एक अधिकारी ने बताया कि जब किसी स्थान पर जलाशय बनाने का प्रस्ताव आता है, तो खसरा नंबर प्रणाली में दर्ज किया जाता है और SIPRI जांच करता है कि स्थल उपयुक्त है या नहीं। ढलान, जल रिचार्ज, भौगोलिक संरचना जैसे दर्जनों मापदंड जांचे जाते हैं। यदि सभी मापदंड सही पाए जाते हैं, तभी अगली स्वीकृति दी जाती है। यह प्रणाली रेवेन्यू रिकॉर्ड, GPS, सैटेलाइट इमेज, ड्रोन सर्वे और निजी डेटा प्रदाताओं से भी वास्तविक समय में डेटा प्राप्त करती है।

लाइनामेंट जैसी वैज्ञानिक विशेषताओं की भी जांच

SIPRI प्रणाली ज़मीन की ऐसी वैज्ञानिक संरचनाएं भी पकड़ती है जैसे लाइनामेंट – जो सतह पर दिखाई नहीं देती लेकिन जल संरक्षण को प्रभावित करती है। इनकी उपस्थिति तालाबों को सूखा कर सकती है, इसलिए इनकी पहचान भी जरूरी है।

अब तक 81,000+ फार्म तालाब, 1.2 हजार अमृत सरोवर और 1 लाख+ कुएं स्वीकृत

अब तक जल गंगा संवर्धन अभियान के तहत 81,000 से अधिक फार्म तालाब, 1,200 अमृत सरोवर और 1 लाख से ज्यादा कुएं स्वीकृत किए जा चुके हैं – और सभी के स्थलों को SIPRI द्वारा तकनीकी सत्यापन के बाद ही स्वीकृति दी गई है।

मिनटों में स्वीकृति, पहले लगते थे कई दिन

MNREGS कमिश्नर अवि प्रसाद ने बताया कि, “हमने इस प्रणाली को इनहाउस विकसित किया है और कई महीनों तक काम किया। पहले जहां एक प्रस्ताव को स्वीकृति मिलने में कई दिन लगते थे, वहीं अब महज 15 मिनट में तकनीकी स्वीकृति मिल सकती है।”

उन्होंने आगे कहा, “यह सिर्फ तालाबों की बात नहीं है – यह करोड़ों ग्रामीण लोगों के जीवन, सिंचाई सुविधा और पर्यावरणीय समृद्धि से जुड़ा हुआ मामला है। यह पहल न केवल भूजल स्तर बढ़ाएगी बल्कि खेती की पैदावार और ग्रामीण जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार लाएगी।”

राष्ट्रीय सराहना और अन्य राज्यों की रुचि

इस अभिनव पहल की केंद्र सरकार ने भी सराहना की है और कई अन्य राज्य अब मध्य प्रदेश से इस प्रणाली को समझने के लिए संपर्क कर रहे हैं। MP की यह पहल आने वाले समय में पूरे देश के लिए मॉडल बन सकती है।

Switch Language »