बिहार में चल रहे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) को लेकर दायर याचिकाओं की सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग (ECI) ने सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार, 10 जुलाई को स्पष्ट किया कि “आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है।”
यह बयान उस वक्त आया जब याचिकाकर्ताओं ने सवाल उठाया कि चुनाव आयोग ने मतदाता सूची में जिन 11 दस्तावेजों को नागरिकता के प्रमाण के रूप में स्वीकार किया है, उसमें आधार कार्ड और वोटर आईडी कार्ड को शामिल क्यों नहीं किया गया, जबकि ये दस्तावेज Representation of Peoples Act के तहत मान्य माने जाते हैं।
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने दलील दी कि आयोग के मापदंडों के अनुसार भी आधार एक वैध पहचान पत्र है, फिर भी बिहार SIR में उसे अस्वीकार कर दिया गया।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ ने जब पूछा कि आधार को स्वीकार क्यों नहीं किया जा रहा है, तब चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा,
“आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं हो सकता।”
इस पर न्यायमूर्ति धूलिया ने तीखी टिप्पणी की,
“नागरिकता का निर्धारण चुनाव आयोग नहीं, गृह मंत्रालय (MHA) करता है।”
जब आयोग की ओर से यह तर्क दिया गया कि उनके पास अनुच्छेद 326 के तहत यह अधिकार है, तो न्यायालय ने पलटकर कहा कि यदि ऐसा था तो यह प्रक्रिया बहुत पहले शुरू की जानी चाहिए थी।
न्यायमूर्ति बागची ने चेताया,
“मान लीजिए, आप 2025 की मतदाता सूची में शामिल किसी व्यक्ति को वोट देने के अधिकार से वंचित करने का फैसला लेते हैं, तो उसे अपील और प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा, जिससे संभव है कि आगामी चुनाव में उसका वोट देने का अधिकार ही छिन जाए। गैर-नागरिकों को सूची से हटाना गलत नहीं है, लेकिन अगर यह कवायद चुनाव से कुछ ही महीने पहले की जाती है, तो यह अनुचित है।”
अब मामले की अगली सुनवाई में यह तय होगा कि क्या चुनाव आयोग का यह कदम मतदाता अधिकारों के उल्लंघन की श्रेणी में आता है या नहीं।