दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों पर बैन की समीक्षा करेंगे CJI बी.आर. गवई

दिल्ली-एनसीआर की सड़कों से आवारा कुत्तों को हटाने के आदेश पर उठे विवाद के बीच भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई ने मामले की पुनः समीक्षा का आश्वासन दिया है। शीर्ष अदालत ने सोमवार को बढ़ते कुत्ता काटने और रेबीज़ मामलों को देखते हुए सभी आवारा कुत्तों को आवासीय क्षेत्रों से हटाकर शेल्टर होम में भेजने का आदेश दिया था, जिस पर समाज के अलग-अलग वर्गों से मिली-जुली प्रतिक्रियाएं आईं।

जहां एक ओर रेज़िडेंट वेलफेयर एसोसिएशनों (RWAs) ने इस फैसले का स्वागत किया, वहीं पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने तर्क दिया कि नगर निगमों के पास इतनी बड़ी संख्या में कुत्तों को शिफ्ट करने के लिए पर्याप्त संसाधन और धन नहीं हैं।

मुख्य न्यायाधीश के सामने आज यह मुद्दा उठाया गया और उन्हें पूर्व के उस आदेश की जानकारी दी गई, जिसमें आवारा कुत्तों के विस्थापन और हत्या पर रोक लगाते हुए मौजूदा कानूनों का पालन अनिवार्य किया गया था। इस पर CJI ने कहा, “मैं इस पर गौर करूंगा,” जिससे हजारों पशु प्रेमियों की उम्मीदें बढ़ गईं।

उल्लेखनीय है कि मई 2024 में जस्टिस जे.के. महेश्वरी की पीठ ने इसी तरह की याचिकाओं को हाई कोर्ट भेजते हुए कहा था कि “सभी जीवों के प्रति करुणा दिखाना संवैधानिक मूल्य है”। वहीं सोमवार का आदेश जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने पारित किया था, जिन्होंने मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर कहा कि बढ़ते कुत्ता काटने के मामलों को रोकने के लिए आवासीय इलाकों को “डॉग-फ्री” बनाना ज़रूरी है।

जस्टिस पारदीवाला ने कहा, “यह कदम हमारे लिए नहीं, बल्कि जनहित में है। इसमें किसी भी तरह की भावनात्मक अपील को स्थान नहीं दिया जाएगा और जल्द से जल्द कार्रवाई होनी चाहिए।”

इस आदेश के बाद राजनीतिक हस्तियों से लेकर फिल्मी सितारों तक कई लोगों ने इसका विरोध किया। अभिनेता जॉन अब्राहम ने CJI को एक आपात अपील भेजी, वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री और पशु अधिकार कार्यकर्ता मेनका गांधी ने इसे “अव्यावहारिक”, “वित्तीय रूप से असंभव” और “पर्यावरणीय संतुलन के लिए हानिकारक” करार दिया।

पशु अधिकार संगठन पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) ने भी इस आदेश की आलोचना करते हुए कहा कि इतने बड़े पैमाने पर विस्थापन न तो वैज्ञानिक है और न ही प्रभावी। PETA इंडिया की सीनियर डायरेक्टर ऑफ वेटरिनरी अफेयर्स डॉ. मिनी अराविंदन ने कहा, “समुदाय अपने मोहल्ले के कुत्तों को परिवार की तरह मानते हैं। उनका विस्थापन और कैद करना कभी सफल नहीं हुआ है और इससे न तो कुत्तों की आबादी कम होगी, न रेबीज़ के मामले घटेंगे और न ही कुत्ता काटने की घटनाएं रुकेंगी।”

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