भोपाल नगर निगम (BMC) की सीमित नसबंदी क्षमता के कारण राज्य की राजधानी में हर साल लगभग 40,000 नए कुत्तों की बढ़ोतरी हो रही है, जबकि आवारा कुत्तों की आबादी नियंत्रित करने के लिए लक्षित प्रयास किए जा रहे हैं। फिलहाल नगर निगम के पास केवल तीन एनिमल बर्थ कंट्रोल (ABC) सेंटर हैं, जो मिलकर हर साल करीब 22,000 नसबंदी करते हैं। विशेषज्ञ मानकों के अनुसार, 85 वार्ड वाले भोपाल में कम से कम नौ नसबंदी केंद्र होने चाहिए, ताकि आवारा कुत्तों की संख्या पर प्रभावी ढंग से नियंत्रण पाया जा सके।
बीएमसी का कहना है कि दिसंबर 2024 में 15 करोड़ रुपये की लागत से नौ एबीसी सेंटर स्थापित करने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा गया था, लेकिन अब तक कोई जवाब नहीं मिला है। सामान्य शहरी योजना के मुताबिक, हर 10 शहरी वार्ड पर एक एबीसी सेंटर की आवश्यकता होती है, जबकि भोपाल में केवल तीन ही हैं। अनुमानित रूप से शहर में करीब 1.2 लाख आवारा कुत्ते हैं, जिनमें से लगभग 60,000 प्रजनन करने में सक्षम हैं।
बीएमसी के तीन एबीसी केंद्रों में हर साल लगभग 20,000 नसबंदी होती है। उच्च मृत्यु दर के बावजूद, पिल्लों में से लगभग 10% ही जीवित रहते हैं, फिर भी हर साल करीब 60,000 नए कुत्ते बढ़ जाते हैं। इनमें लगभग 30,000 मादा कुत्ते हैं, जो साल में चार से दस पिल्लों को जन्म दे सकती हैं। नसबंदी अभियान इस बढ़ोतरी को रोकने के लिए चलाए जाते हैं, लेकिन नगरपालिका के आंकड़े बताते हैं कि फिर भी शुद्ध वार्षिक बढ़ोतरी करीब 40,000 कुत्तों की होती है।
दिलचस्प बात यह है कि प्रस्ताव में बीएमसी ने केरवा-कालियासोत क्षेत्र को नसबंदी के लिए प्राथमिकता दी है, क्योंकि वहां जंगली जानवरों और कुत्तों के बीच टकराव की घटनाएं होती हैं। हालांकि, इस प्राथमिकता से शहर में बच्चों और शिशुओं पर कुत्तों के हमलों की समस्या से ध्यान भटकने की आशंका है।