भोपाल में अंग प्रत्यारोपण बढ़े, लेकिन एचएलए लैब की कमी बनी बड़ी चुनौती

पिछले दो वर्षों में भोपाल में किडनी ट्रांसप्लांट के मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इसमें 12 कैडेवरिक (मृतक दाता) और दर्जनों लाइव डोनर ट्रांसप्लांट शामिल हैं। हालांकि, स्थानीय स्तर पर एचएलए (ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन) मैचिंग सुविधा न होने से चिकित्सकों को अब भी बड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है।

फिलहाल, डोनर और रिसिपिएंट की संगतता की जांच इंदौर या मध्यप्रदेश से बाहर की लैब्स में कराई जाती है। यह प्रक्रिया छह घंटे तक का समय लेती है, जबकि कैडेवरिक ट्रांसप्लांट में गुर्दा महज 12 घंटे तक ही उपयोग योग्य रहता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह समय सीमा बेहद अहम है। इसके बावजूद, भोपाल के अस्पतालों ने जटिल ट्रांसप्लांट को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है।

एम्स-भोपाल के यूरोलॉजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. केतन मेहरा ने बताया कि संस्थान ने एचएलए और क्रॉस-मैचिंग के लिए लैब स्थापित करने का प्रस्ताव दिया है। एम्स ने अब तक एक कैडेवरिक और 13 डोनर किडनी ट्रांसप्लांट किए हैं।

वहीं, सिद्धांता रेडक्रॉस अस्पताल के निदेशक और गैस्ट्रो-इंटेस्टाइनल, लेप्रोस्कोपिक सर्जन डॉ. सुभोध वर्श्नेय ने दिल्ली के लिवर ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. अरविंदर सिंह सोइन के साथ मंगलवार को हुई चर्चा में भी स्थानीय एचएलए लैब की आवश्यकता पर जोर दिया। दोनों विशेषज्ञ हाल ही में अस्पताल में हुए सातवें सफल कैडेवरिक लिवर ट्रांसप्लांट के बाद मीडिया से रूबरू हुए। यह अंग जबलपुर से लाया गया था।

सूत्रों के अनुसार, एक निजी अस्पताल भी जल्द ही एचएलए और क्रॉस-मैचिंग सुविधा को पुनः शुरू करने की योजना बना रहा है, जिससे प्रत्यारोपण की संख्या और सफलता दर में वृद्धि हो सकती है।

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