सीनी (मप्र)। ‘मोगली की धरती’ और पेंच टाइगर रिज़र्व के लिए मशहूर सीनी ज़िले में अब एक नई कहानी लिखी जा रही है। यहाँ हज़ारों बच्चे, जो अब तक फर्श पर बैठकर पढ़ाई करते थे, अब बेंच और डेस्क पर बैठकर पढ़ पा रहे हैं। यह संभव हुआ है 2015 बैच की IAS अधिकारी और कलेक्टर संस्कृति जैन द्वारा शुरू किए गए सामुदायिक अभियान ‘गिफ्ट अ डेस्क’ से।
इस पहल ने देखते ही देखते वैश्विक रूप ले लिया। भारत ही नहीं, बल्कि जर्मनी और कनाडा जैसे देशों से भी लोग मदद के लिए आगे आए। जैन बताती हैं, “दशकों से बच्चे ज़मीन पर बैठकर कॉपी घुटनों पर रखकर पढ़ते थे। हमने सोचा कि अगर समुदाय को अपनी प्राथमिक स्कूलों से जोड़ा जाए तो हालात बदले जा सकते हैं।”
पहले चरण में 1,367 प्राथमिक विद्यालयों की पहचान की गई, जहाँ कक्षा 1 से 5 तक 20 से अधिक छात्र पढ़ते हैं। ज़रूरत करीब 20,347 बेंच-डेस्क की निकली। इसके बाद एक ओपन गूगल शीट बनाई गई, जिसमें स्कूलों के नाम, ज़रूरत और संपर्क नंबर दर्ज किए गए। कोई भी लॉग इन कर अपने पुराने स्कूल या किसी भी स्कूल के लिए बेंच दान कर सकता था।
स्थानीय फर्नीचर निर्माताओं से बैठक कर एक बेंच-डेस्क सेट की कीमत 2,200 रुपये तय की गई ताकि पारदर्शिता बनी रहे। एक कॉल सेंटर भी बनाया गया ताकि दानदाताओं को मदद मिल सके।
अब तक 704 स्कूलों को 10,000 से अधिक बेंच-डेस्क मिल चुके हैं और 1,000 और रास्ते में हैं। योगदान करने वालों में 13 NRI, जर्मनी और कनाडा के नागरिक, स्थानीय व्यापारी, पुलिसकर्मी और सरकारी कर्मचारी शामिल हैं। सीनी तहसील कार्यालय के कर्मचारियों ने मिलकर ही 120 बेंच दान किए।
शिक्षकों का कहना है कि बेंच मिलने के बाद बच्चों की उपस्थिति और एकाग्रता में सुधार आया है। जैन ने कहा, “यह सिर्फ फर्नीचर नहीं, बच्चों को गरिमा देने का तरीका है। यह संदेश है कि वे यहाँ के हैं और उनकी शिक्षा मायने रखती है।”
डिजिटल स्तर पर ज़िला ई-गवर्नेंस मैनेजर राहुल शिवहरे ने अभियान की रीढ़ का काम किया। गूगल शीट से लेकर कॉल सेंटर तक पारदर्शिता बनाए रखने में उनकी टीम अहम रही।
जैन कहती हैं, “यह मेरे कार्यकाल का सबसे संतोषजनक प्रोजेक्ट है। डेस्क और बेंच देना ही लक्ष्य नहीं, बल्कि पढ़ाई को गरिमा लौटाना असली मक़सद है। जब तक लोग इस पर विश्वास करते रहेंगे, यह अभियान चलता रहेगा।”