न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को हटाने की प्रक्रिया पर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, सीजेआई गवई ने कहा – अलग पीठ गठित करेंगे
मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अनुपस्थिति में वर्तमान मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई ने बुधवार (23 जुलाई, 2025) को कहा कि वह इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा की याचिका पर सुनवाई के लिए एक अलग पीठ का गठन करेंगे। यह याचिका सुप्रीम कोर्ट की ‘इन-हाउस जांच प्रक्रिया’ और तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा मई महीने में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजी गई हटाने की सिफारिश को चुनौती देती है। मुख्य न्यायाधीश गवई ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की मौखिक अपील पर कहा, “मैं इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकता क्योंकि मैं उस समय की सलाह-मशविरे में शामिल था। मैं इसके लिए एक पीठ गठित करूंगा।” इस पर श्री सिब्बल ने उत्तर दिया, “यह आपका निर्णय है।” याचिका में कहा गया है कि तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना (अब सेवानिवृत्त) द्वारा की गई अनुशंसा में कई संवैधानिक मुद्दे उठते हैं। हाल ही में संसद के दोनों सदनों — लोकसभा और राज्यसभा — में न्यायमूर्ति वर्मा को हटाने को लेकर नोटिस दाखिल किए गए थे। इसके ठीक बाद यह याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है। याचिका में दावा किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट की बनाई गई ‘इन-हाउस’ जांच प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 124 और 218 का उल्लंघन करती है, जो संसद को ही न्यायाधीशों को हटाने का विशेषाधिकार देता है। याचिका में कहा गया कि यह प्रक्रिया एक समानांतर, असंवैधानिक व्यवस्था है जो न्यायपालिका को संसद के अधिकारों पर अतिक्रमण करने देती है। मार्च 14-15 की रात न्यायमूर्ति वर्मा के सरकारी आवास के गोदाम में आग लगने के बाद वहां कथित रूप से बेहिसाब नकदी मिलने की पुष्टि एक तीन सदस्यीय जांच समिति ने की थी। इस रिपोर्ट को मई में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भेजा था, जब न्यायमूर्ति वर्मा ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया था। ‘XXX’ नाम से दाखिल इस याचिका में कहा गया कि इन-हाउस जांच प्रक्रिया के तहत न तो आरोपों की औपचारिक सूची दी गई, न ही न्यायमूर्ति वर्मा को अपनी बात रखने का पूरा अवसर मिला। याचिका में कहा गया कि न्यायमूर्ति खन्ना ने उन्हें रिपोर्ट मिलने के बाद व्यक्तिगत रूप से नहीं सुना और न ही जांच दस्तावेजों की समुचित समीक्षा करने का अवसर दिया। याचिका के अनुसार, जांच निष्कर्ष सिर्फ कुछ तस्वीरों और निजी रूप से लिए गए वीडियो पर आधारित हैं। नकदी की न तो कोई जब्ती रिपोर्ट (पंचनामा) तैयार की गई और न ही किसी प्रकार की औपचारिक शिकायत दर्ज की गई। जांच समिति ने यह भी स्पष्ट नहीं किया कि वह नकदी कब, कैसे और किसने वहां रखी। याचिका में मांग की गई है कि सुप्रीम कोर्ट इस इन-हाउस जांच प्रक्रिया को असंवैधानिक घोषित करे, क्योंकि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता और संविधान की मूल संरचना के विरुद्ध है।
