एक ऐसी दुनिया में जहाँ उम्र अक्सर महत्वाकांक्षाओं की सीमा तय करती है, भोपाल के तीन अद्भुत पर्वतारोही इस धारणा को चुनौती दे रहे हैं — यह साबित करते हुए कि जुनून और दृढ़ संकल्प की कोई उम्र नहीं होती। भगवान सिंह, ज्योति रातरे और सुनीता सिंह ने अपने जीवन के उस दौर में पर्वतारोहण की राह चुनी, जब उनके समकालीन आराम और रिटायरमेंट की ओर बढ़ रहे थे। उनके सफर सिर्फ ऊँचे शिखरों को फतह करने की कहानियाँ नहीं हैं, बल्कि यह समाज की सोच और व्यक्तिगत सीमाओं को भी मात देने की दास्तान हैं। 52 वर्ष की उम्र में भगवान सिंह ने 2016 में माउंट एवरेस्ट फतह कर इतिहास रच दिया। खेल विभाग में कार्यरत भगवान सिंह का मानना है कि एवरेस्ट चढ़ना सिर्फ एक उपलब्धि नहीं थी, बल्कि यह साबित करना था कि सपनों का पीछा करने के लिए कभी देर नहीं होती। इसके बाद उन्होंने मैराथन दौड़ना शुरू किया और अब तक 120 से अधिक फुल और हाफ मैराथन पूरी कर चुके हैं। भगवान सिंह कहते हैं, “एवरेस्ट की चढ़ाई केवल शिखर तक पहुँचने की बात नहीं थी, बल्कि यह साबित करना था कि उम्र बाधा नहीं है।” इसी तरह, 56 वर्षीया उद्यमी ज्योति रातरे ने 2024 में एवरेस्ट पर चढ़कर सबको चौंका दिया। खास बात यह है कि उन्होंने अपना पर्वतारोहण सफर 49 वर्ष की आयु में शुरू किया था। अब तक वे सात सबसे ऊँचे शिखरों में से पाँच पर विजय पा चुकी हैं। ज्योति कहती हैं, “उस पर्वत पर उठाया हर कदम उम्र से जुड़े पूर्वाग्रहों को तोड़ने की दिशा में था।” कहानी यहीं खत्म नहीं होती। सुनीता सिंह — जो एसबीआई के भोपाल मुख्यालय में सहायक महाप्रबंधक हैं — ने हाल ही में यूरोप की सबसे ऊँची चोटी माउंट एल्ब्रुस पर तिरंगा लहराया। 56 वर्ष की सुनीता अब 2027 में माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई की तैयारी कर रही हैं। वे मुस्कुराते हुए कहती हैं, “पर्वतारोहण ने मुझे सिखाया है कि असली सीमाएँ वही हैं, जिन्हें हम खुद पर थोपते हैं।” इन तीनों की यात्राएँ न केवल शारीरिक ताकत बल्कि मानसिक दृढ़ता और सकारात्मक सोच की मिसाल हैं। ये साबित करती हैं कि सक्रिय रहकर और स्पष्ट लक्ष्य तय करके जीवन के किसी भी पड़ाव पर असाधारण उपलब्धियाँ हासिल की जा सकती हैं। ज्योति का मानना है, “सक्रिय रहना और सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखना जीवन के किसी भी चरण में अद्भुत उपलब्धियाँ दिला सकता है।” वहीं सुनीता जोड़ती हैं, “चाहे पर्वतारोहण हो या कोई व्यक्तिगत लक्ष्य, सफलता की कुंजी है ध्यान केंद्रित रखना और पूरी निष्ठा से प्रयास करना।” भगवान, ज्योति और सुनीता ने पहाड़ों को फतह कर केवल ऊँचाइयाँ नहीं छुईं, बल्कि जीवन की संभावनाओं के नए आयाम भी खोले हैं। वे आज उन तमाम लोगों के लिए प्रेरणा हैं जो मानते हैं कि नया अध्याय शुरू करने में देर हो चुकी है। उनकी विरासत साहस, प्रेरणा और अदम्य जज़्बे की है — यह याद दिलाने के लिए कि जीवन का सबसे बेहतरीन अध्याय कभी भी शुरू हो सकता है, बशर्ते आप उसे जीने की हिम्मत रखें।