भोपाल गैस त्रासदी मामला: डाउ केमिकल के खिलाफ आपराधिक मुकदमा भोपाल की अदालत में ही चलेगा

भोपाल गैस त्रासदी से जुड़े आपराधिक मामले में अमेरिकी रासायनिक कंपनी डाउ केमिकल की कानूनी जवाबदेही पर सुनवाई अब भी भोपाल स्थित न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी (JMFC) हेमलता अहिरवार की अदालत में जारी रहेगी। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह मामला भोपाल की अदालत के अधिकार क्षेत्र में आता है और अगली सुनवाई 23 अगस्त को होगी। डाउ केमिकल की ओर से वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा और रविंद्र श्रीवास्तव ने अदालत में दलील दी थी कि इस केस की सुनवाई केवल इंदौर स्थित सीबीआई कोर्ट में ही हो सकती है, क्योंकि अभियोजन एजेंसी सीबीआई है। वहीं, सीबीआई के वकील मनफूल विश्नोई और सामाजिक संगठन ‘भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन’ (BGIA) के वकील अवि सिंह और प्रसन्ना बी ने यह तर्क दिया कि गैस त्रासदी भोपाल में हुई थी, इसलिए भोपाल की अदालत पूरी तरह से सक्षम है इस केस की सुनवाई करने के लिए। गौरतलब है कि डाउ केमिकल ने वर्ष 2000 में यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन (UCC) को खरीद लिया था, जो कि इस त्रासदी के आपराधिक मामले में पहले से ही एक उद्घोषित अपराधी (Proclaimed Offender) घोषित हो चुकी है। BGIA की ओर से अदालत में याचिका दायर कर डाउ केमिकल को मामले में पक्षकार बनाने की मांग की गई थी, जिसे स्वीकार कर अदालत ने कंपनी को समन जारी किए थे। डाउ केमिकल ने पहले छह समनों का जवाब नहीं दिया, लेकिन सातवें समन के बाद कंपनी के वकील अदालत में पेश हुए। पिछली सुनवाई में कंपनी के वकीलों ने रुख बदलते हुए यह आपत्ति उठाई कि भोपाल की JMFC अदालत को इस मामले में सुनवाई करने का अधिकार नहीं है। हालांकि, JMFC हेमा अहिरवार ने इस आपत्ति को खारिज करते हुए निर्णय दिया कि यह मामला भोपाल की अदालत में ही चलेगा और डाउ केमिकल की आपराधिक जिम्मेदारी की जांच जारी रहेगी।

27% OBC आरक्षण में देरी पर कांग्रेस का अल्टीमेटम: प्रदेशव्यापी आंदोलन की चेतावनी

मध्यप्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को 27% आरक्षण देने में हो रही देरी को लेकर कांग्रेस ने राज्य की भाजपा सरकार को खुली चेतावनी दी है। शनिवार को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने संयुक्त प्रेस वार्ता में कहा कि यदि शीघ्र ही OBC आरक्षण लागू नहीं किया गया तो कांग्रेस पूरे प्रदेश में आंदोलन शुरू करेगी। “भाजपा का ओबीसी विरोधी चेहरा सामने आ गया है। कांग्रेस अंतिम दम तक इस अन्याय के खिलाफ लड़ेगी,” पटवारी ने कहा। उन्होंने भाजपा सरकार पर धोखाधड़ी, विश्वासघात और ओबीसी समाज के साथ शर्मनाक अन्याय करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार संविधान की मूल संरचना से भी छेड़छाड़ कर रही है, ताकि पिछड़े वर्ग को उनके अधिकार न मिलें। सुप्रीम कोर्ट की बार-बार सख्त हिदायतों के बावजूद 27% आरक्षण लागू नहीं किया गया, जिससे ओबीसी समाज को उनके संवैधानिक अधिकार से वंचित किया जा रहा है। पटवारी ने कहा, “यह भाजपा की साजिश है कि प्रदेश की 50% से ज्यादा आबादी को गुलाम बनाकर उनका भविष्य बर्बाद किया जाए। हम यह कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे।” सुप्रीम कोर्ट की फटकार नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने बताया कि शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में OBC आरक्षण के मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने राज्य सरकार की निष्क्रियता और टालमटोल रवैये पर कड़ी नाराज़गी जताई। कोर्ट ने मुख्य सचिव से हलफनामा मांगा है, जिसमें यह स्पष्ट करना होगा कि वर्तमान में रुके हुए 13% पदों की नियुक्तियों में क्या बाधाएं हैं। सिंघार ने कहा कि 2019 में तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने OBC आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% कर दिया था, जिससे कुल आरक्षण कोटा 63% हो गया था। लेकिन भाजपा सरकार कोर्ट में लंबित याचिकाओं का बहाना बनाकर इसे लागू नहीं कर रही है। उन्होंने बताया कि 25 जून को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा था कि जब कोई कानूनी बाधा नहीं है, तो 27% आरक्षण अभी तक लागू क्यों नहीं किया गया? फिर भी भाजपा सरकार इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है। कांग्रेस की मांगें और चेतावनी कांग्रेस नेताओं ने मांग की कि: अन्यथा, कांग्रेस पूरे प्रदेश में विरोध-प्रदर्शन, रैलियां और जन-जागरूकता अभियान शुरू करेगी।

12 साल से ड्यूटी पर नहीं आया सिपाही, फिर भी मिलती रही सैलरी; लापरवाही पर जांच शुरू

हाल ही में सामने आए एक चौंकाने वाले मामले में पता चला है कि एक पुलिस सिपाही पिछले 12 वर्षों से घर पर बैठकर वेतन ले रहा था, जबकि उसकी ड्यूटी पर कभी मौजूदगी दर्ज ही नहीं हुई। मामले के सामने आने के बाद एक एसीपी स्तर के अधिकारी के नेतृत्व में जांच शुरू कर दी गई है। पुलिस अधिकारियों ने कहा है कि लापरवाही के लिए जिम्मेदार लोगों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। सूत्रों के अनुसार, यह लापरवाही तब उजागर हुई जब पुलिस महानिदेशक (DGP) ने लंबे समय से एक ही थाने या कार्यालय में तैनात पुलिसकर्मियों के तबादले के आदेश दिए। इसके साथ ही सभी पुलिसकर्मियों का विवरण डिजिटल करने के निर्देश भी दिए गए। इसी प्रक्रिया में यह गंभीर चूक सामने आई। विदिशा जिले से ताल्लुक रखने वाला यह सिपाही वर्ष 2011 में पुलिस सेवा में भर्ती हुआ था। प्रशिक्षण के बाद उसे पुलिस लाइन भेजा गया और कुछ समय बाद सागर में आगे की ट्रेनिंग के लिए उसका ट्रांसफर किया गया। उस समय के प्रभारी अधिकारी ने उसका सेवा रिकॉर्ड उसे सौंप दिया और सागर भेज दिया। लेकिन सिपाही ने सागर रिपोर्ट नहीं किया और किसी कारणवश अपने घर लौट गया। उसने अपना सेवा रिकॉर्ड स्पीड पोस्ट के माध्यम से वापस पुलिस लाइन भिजवा दिया, जिसे संबंधित अधिकारियों ने रिसीव कर लिया। इसके बाद किसी भी अधिकारी ने न तो उसकी पोस्टिंग की जानकारी ली और न ही उसके गैरहाजिर रहने पर ध्यान दिया। इतने वर्षों में सिपाही की उपस्थिति दर्ज किए बिना ही उसके बैंक खाते में नियमित वेतन भेजा जाता रहा। पुलिस सूत्रों के अनुसार, इस दौरान सैलरी के रूप में कई लाख रुपये ट्रांसफर हुए हैं, जिन्हें अब वसूला जाएगा। डीसीपी मुख्यालय श्रद्धा तिवारी ने जानकारी दी कि इस पूरे मामले की जांच एसीपी टीटी नगर अंकिता खतरकर के नेतृत्व में की जा रही है। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट मिलने के बाद सिपाही के साथ-साथ इस लापरवाही के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर भी कार्रवाई की जाएगी।

भोपाल ‘लव जिहाद’ मामले में NHRC सख्त, जांच दोबारा कराने और पीड़ितों को मुआवजा देने के निर्देश

भोपाल में कथित ‘लव जिहाद’ मामले की जांच से असंतुष्टि जताते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह एक नई जांच टीम का गठन कर मामले की पुनः जांच कराए। साथ ही आयोग ने राज्य सरकार को पीड़ित लड़कियों को ₹5 लाख और नाबालिग पीड़िता को ₹6 लाख मुआवजा देने का आदेश भी दिया है। यह जानकारी शुक्रवार को अधिकारियों ने साझा की। इस साल अप्रैल में अशोका गार्डन पुलिस ने पाँच युवकों के खिलाफ मामला दर्ज किया था, जिन पर कॉलेज छात्राओं के साथ बलात्कार, ब्लैकमेलिंग और जबरन धर्म परिवर्तन कर शादी के लिए मजबूर करने का आरोप है। NHRC की सदस्यीय पीठ, जिसकी अध्यक्षता प्रियंक कनूंगो कर रहे हैं, ने मामले का संज्ञान लिया और एक जांच टीम गठित की थी। जांच रिपोर्ट की समीक्षा के बाद आयोग ने पाया कि भोपाल पुलिस की जांच पर्याप्त नहीं थी और कई गंभीर पहलुओं की अनदेखी की गई। आयोग के सामने कुछ और महिलाएं भी सामने आईं, जिन्होंने बताया कि वे भी शोषण का शिकार हुई हैं। रिपोर्ट से यह भी खुलासा हुआ कि पीड़ितों में से तीन लड़कियों को लगातार प्रताड़ना के कारण कॉलेज छोड़ना पड़ा। NHRC ने यह भी कहा कि: आयोग के निर्देश:🔸 DGP को आदेश दिया गया है कि वे SSP रैंक से ऊपर के अधिकारी की अगुवाई में नई जांच टीम बनाएं और चार सप्ताह में रिपोर्ट सौंपें।🔸 मुख्य सचिव को निर्देश दिए गए हैं कि वे कॉलेज छोड़ चुकी छात्राओं को दोबारा शिक्षा में वापस लाने की व्यवस्था सुनिश्चित करें।🔸 पीड़ितों को ₹5 लाख और नाबालिग पीड़िता को ₹6 लाख का मुआवजा दिया जाए। निष्कर्ष:इस मामले में NHRC की सख्ती से साफ है कि महिलाओं की सुरक्षा और न्याय को लेकर आयोग किसी भी प्रकार की लापरवाही बर्दाश्त नहीं करेगा। अब देखना यह होगा कि सरकार और पुलिस विभाग इन निर्देशों पर कितनी तत्परता से अमल करते हैं।

सब्जाश नगर ओवरब्रिज की खतरनाक डिजाइन पर उठे सवाल, 8 घंटे में दो हादसे

ऐशबाग ब्रिज की 90 डिग्री की मोड़ को लेकर उठे विवाद के कुछ सप्ताह बाद, भोपाल का एक और पुल – सुभाष नगर रेलवे ओवरब्रिज (ROB) – अब अपनी ‘साँप जैसी’ संरचना और गलत ढंग से लगाए गए डिवाइडर्स को लेकर चर्चा में है। महज आठ घंटे में दो सड़क हादसे होने से पुल की डिजाइन और सुरक्षा मानकों पर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं। करीब 40 करोड़ रुपये की लागत से बना यह पुल दो साल से चालू है और मैदा मिल से प्रभात पेट्रोल पंप के बीच प्रमुख कड़ी के रूप में विकसित किया गया था। यह पुल रेलवे स्टेशन की ओर जाने वालों के लिए एक महत्वपूर्ण मार्ग माना जाता है। हालाँकि इसने इलाके में ट्रैफिक को कुछ हद तक राहत दी है, लेकिन हालिया दुर्घटनाओं ने इसकी संरचनात्मक खामियों को उजागर कर दिया है। दोनों हादसों में वाहन चालक पुल की तीव्र मोड़ों को पार करते समय संतुलन खो बैठे। एक मामले में कार डिवाइडर से टकराकर हवा में पलट गई, जबकि दूसरे में एक स्कूल वैन उसी डिवाइडर से टकराकर क्षतिग्रस्त हो गई। हालाँकि अभी तक कोई जानहानि नहीं हुई है, लेकिन लगातार हो रही दुर्घटनाओं ने संकेत दे दिया है कि यदि जल्द सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए, तो कोई बड़ा हादसा हो सकता है। पुल की प्रमुख खामियाँ:🔹 साँप जैसी संरचना: सुभाष नगर ओवरब्रिज में एक के बाद एक चार तीखे मोड़—दायाँ, बायाँ, फिर दायाँ और अंत में बायाँ—आते हैं। ये सभी मोड़ कुछ ही सेकंड में पार करने होते हैं, जिससे ड्राइवर को प्रतिक्रिया देने का समय नहीं मिल पाता। 🔹 खराब तरीके से लगाया गया डिवाइडर: मैदा मिल की ओर उतरते वक्त एक तेज मोड़ के तुरंत बाद डिवाइडर आ जाता है, जो तेज गति से या रात के समय चलने वाले वाहनों के लिए दुर्घटनाजनक साबित हो रहा है। 🔹 कम ऊंचाई वाला डिवाइडर: डिवाइडर की ऊंचाई इतनी कम है कि रात के समय या कम रोशनी में यह आसानी से नजर नहीं आता। 🔹 ट्रैफिक सिग्नल की खराबी: बोर्ड ऑफिस से प्रभात पेट्रोल पंप की ओर आने वाले वाहनों को जिन्सी चौक से आने वाले ट्रैफिक को पार करना पड़ता है। इस स्थान पर ट्रैफिक सिग्नल बार-बार खराब होता है, जिससे टक्कर की आशंका बढ़ जाती है। विशेषज्ञ की राय:संरचनात्मक इंजीनियर और पुल विशेषज्ञ प्रखर पगारिया ने कहा कि “सर्पिल (serpentine) डिजाइन inherently खतरनाक होती है और केवल तब अपनाई जानी चाहिए जब स्थान की भारी कमी हो।” उन्होंने चेताया कि “अगर कोने, मोड़ और डिवाइडर्स को सावधानीपूर्वक नहीं प्लान किया गया, तो यह खासकर रात के समय चालकों के लिए जानलेवा हो सकता है।” उन्होंने कहा कि इतनी जल्दी-जल्दी चार मोड़ देना और वह भी बिना पर्याप्त रिस्पॉन्स टाइम के, एक बेहद असुरक्षित डिजाइन को दर्शाता है। निष्कर्ष:बार-बार हो रही दुर्घटनाएं बीएमसी और संबंधित विभागों के लिए चेतावनी हैं कि वे पुल की संरचना की पुन: समीक्षा करें और जल्द से जल्द उचित सुधारात्मक कदम उठाएं, जिससे कोई बड़ा हादसा होने से रोका जा सके।

पटेल नगर में सार्वजनिक उपयोग की जमीन की अवैध बिक्री, बीएमसी शनिवार को दर्ज कराएगी एफआईआर

भोपाल नगर निगम (बीएमसी) के भवन अनुज्ञा विभाग द्वारा शनिवार को पिपलानी थाने में एम/एस गंधर्व लैंड एंड फाइनेंस प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए आवेदन दिया जाएगा। यह कार्रवाई पटेल नगर क्षेत्र में स्कूल, पार्क, अस्पताल और खेल मैदान जैसी सार्वजनिक सुविधाओं के लिए आरक्षित जमीन की अवैध बिक्री के मामले में की जा रही है। बीएमसी अधिकारियों के अनुसार, यह मामला गंभीर रूप से शहरी नियोजन और अनुबंधों के उल्लंघन से जुड़ा है। नगर नियोजक अनुप गोयल ने बताया कि 1.212 एकड़ जमीन जो प्राथमिक विद्यालय के लिए आरक्षित थी, वह नगर निगम की स्वामित्व वाली थी और 1999 में किए गए अनुबंधों के अंतर्गत संरक्षित थी। इसके बावजूद, बिल्डर अनुज ग्रोवर ने इस जमीन को 27 नवंबर 2024 को जय प्रताप सिंह यादव और अभिषेक आनंद को 3.90 करोड़ रुपये में बेच दिया, जो कि 1962 के डाइवर्जन आदेश और नगर निगम के समझौतों का उल्लंघन है। उक्त जमीन 90.17 एकड़ के उस लेआउट का हिस्सा है जिसे 1961 और 1987 में स्वीकृति दी गई थी। इस लेआउट में स्कूल, अस्पताल, पार्क और सड़क जैसी सार्वजनिक संरचनाओं के लिए विशेष भूखंड निर्धारित थे। 1999 के समझौते की धारा 6 में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि ये आरक्षित भूमि नगर निगम के स्वामित्व में ही रहेगी। इस मामले की जानकारी हाल ही में राज्य मंत्री कृष्णा गौर तक पहुंची, जिनके निर्देश पर बीएमसी अधिकारियों ने विस्तृत जांच के बाद कानूनी कार्रवाई शुरू की है। बीएमसी के सीपी गोयल ने ‘फ्री प्रेस’ को बताया कि शिकायत पत्र अब तक थाने में नहीं पहुंचा है, लेकिन सभी संबंधित दस्तावेज तैयार कर लिए गए हैं।

भोपाल यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के 337 मीट्रिक टन विषैले कचरे का निपटारा, हाईकोर्ट को दी गई रिपोर्ट

सोमवार को मध्य प्रदेश सरकार ने जबलपुर स्थित मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की खंडपीठ के समक्ष एक हलफनामा पेश कर बताया कि भोपाल की यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से निकले 337 मीट्रिक टन पैक किए गए विषैले कचरे का सफलतापूर्वक निपटान पिथमपुर स्थित TSDF संयंत्र में कर लिया गया है। राज्य सरकार ने जानकारी दी कि यह खतरनाक कचरा रविवार देर रात तक संयंत्र में जलाया गया, जिसमें केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (MPPCB) के तकनीकी विशेषज्ञों की निगरानी रही। सरकार के अनुसार, इस पूरी प्रक्रिया के दौरान करीब 850 मीट्रिक टन राख और अवशेष एकत्र हुए हैं, जिन्हें विभिन्न लैंडफिल स्थलों में MPPCB से CTO (सहमति प्रमाण पत्र) मिलने के बाद निपटाया जाएगा। न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन और न्यायमूर्ति दिनेश कुमार पालीवाल की पीठ ने राज्य सरकार को अगली सुनवाई 31 जुलाई, 2025 को करते हुए अदालती स्थिति रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है। इस सुनवाई में राख और अवशेषों के निपटान को लेकर भी चर्चा की जाएगी। याचिका में हस्तक्षेपकर्ताओं ने दावा किया कि पिथमपुर संयंत्र के आसपास रहने वाले लोगों ने स्वास्थ्य समस्याओं की शिकायत की है। इस पर न्यायमूर्ति श्रीधरन ने पूछा कि क्या इस राख को आबादी से दूर किसी स्थान पर सुरक्षित रूप से रखा जा सकता है? उन्होंने टिप्पणी की कि अगर राख विषैली है तो वह लैंडफिल में भी विषैली ही रहेगी। अदालत ने इस विषय पर NEERI, CPCB और MPPCB के विशेषज्ञों की राय सुनने का निर्णय लिया है। बता दें कि सामाजिक कार्यकर्ता आलोक प्रताप सिंह ने 2004 में यूनियन कार्बाइड परिसर से विषैले कचरे के निपटान को लेकर जनहित याचिका दायर की थी। उनके निधन के बाद, कोर्ट ने इस मामले को स्वत: संज्ञान में लेकर सुनवाई जारी रखी। राज्य सरकार द्वारा पेश हलफनामे में बताया गया कि 27 फरवरी से 12 मार्च तक पिथमपुर संयंत्र में 30 मीट्रिक टन कचरे का ट्रायल रन किया गया था। इसके बाद हर घंटे 270 किलोग्राम कचरा जलाया गया और 30 जून की रात 1:02 बजे यह प्रक्रिया पूरी हो गई। सरकार ने यह भी जानकारी दी कि यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से अतिरिक्त 19.157 मीट्रिक टन कचरा भी एकत्र किया गया है, जिसे 3 जुलाई, 2025 तक निपटाया जाएगा।

1 जुलाई से ‘हमारे शिक्षक’ पोर्टल पर अनिवार्य होगी सरकारी स्कूल शिक्षकों की उपस्थिति दर्ज करना

1 जुलाई से राज्य के सभी सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को ई-गवर्नेंस प्लेटफॉर्म ‘हमारे शिक्षक’ के माध्यम से अपनी उपस्थिति दर्ज करना अनिवार्य होगा। सरकार ने यह कदम शिक्षकों पर निगरानी को सख्त करने और प्रशासनिक नियंत्रण को बेहतर बनाने के उद्देश्य से उठाया है। डिजिटल निगरानी का नया युग 23 जून को लॉन्च किए गए इस विशेष पोर्टल को शिक्षा विभाग के Education 3.0 पोर्टल का हिस्सा बताया गया है। इसके माध्यम से न केवल शिक्षकों की उपस्थिति ऑनलाइन दर्ज होगी, बल्कि सभी सेवा संबंधित जानकारियाँ भी डिजिटल रूप से अपडेट और संरक्षित की जाएंगी। लोक निर्देशालय (DPI) ने इस संबंध में सभी जिलों के कलेक्टरों को पत्र जारी कर नई व्यवस्था को पूरी तरह लागू करने का निर्देश दिया है। उपस्थिति के लिए तय समयसीमा उद्देश्य और लाभ शिक्षा विभाग का मानना है कि यह प्रणाली शिक्षा व्यवस्था को डिजिटल और उत्तरदायी बनाने की दिशा में एक मजबूत कदम है, जिससे स्कूलों की कार्यक्षमता में सुधार होगा।

मध्यप्रदेश जल निगम लिमिटेड से जुड़े ₹183 करोड़ के फर्जी बैंक गारंटी घोटाले में CBI ने दो गिरफ्तार

भोपाल/कोलकाता। मध्यप्रदेश जल निगम लिमिटेड (MPJNL) की सिंचाई परियोजनाओं से जुड़े ₹183.21 करोड़ के फर्जी बैंक गारंटी घोटाले के मामले में सीबीआई ने दो आरोपियों को गिरफ्तार किया है। गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों में एक राष्ट्रीयकृत बैंक का वरिष्ठ प्रबंधक भी शामिल है। यह जानकारी अधिकारियों ने शुक्रवार को दी। सीबीआई ने गुरुवार और शुक्रवार को दिल्ली, पश्चिम बंगाल, गुजरात, झारखंड और मध्यप्रदेश में 23 ठिकानों पर छापेमारी की। इसी दौरान कोलकाता से दो मुख्य आरोपी — गोविंद चंद्र हांसदा (वरिष्ठ बैंक प्रबंधक) और मोहम्मद फिरोज खान को गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तार आरोपियों को शुक्रवार को कोलकाता की स्थानीय अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें ट्रांजिट रिमांड पर इंदौर लाया जा रहा है। हाईकोर्ट के आदेश पर सामने आया मामला यह घोटाला हाईकोर्ट के निर्देश के बाद सामने आया, जिसके तहत सीबीआई ने 9 मई 2025 को तीन अलग-अलग मामले दर्ज किए। जांच में पाया गया कि इंदौर की कंपनी तीर्थ गोपिकॉन लिमिटेड ने जल निगम की परियोजनाएं हासिल करने के लिए 8 फर्जी बैंक गारंटियां जमा की थीं। कंपनी को 2023 में मध्यप्रदेश में ₹974 करोड़ की तीन सिंचाई परियोजनाएं आवंटित की गई थीं। इन परियोजनाओं के समर्थन में ₹183.21 करोड़ की जाली बैंक गारंटियां दी गईं। जांच में यह भी सामने आया कि जल निगम को बैंक की आधिकारिक ईमेल आईडी की नकल कर फर्जी ईमेल भेजे गए, जिनमें इन गारंटियों की पुष्टि की गई थी। इस फर्जी पुष्टि के आधार पर ही MPJNL ने कंपनी को परियोजनाएं आवंटित कर दी थीं। देशभर में फैला फर्जीवाड़े का नेटवर्क सीबीआई की जांच में खुलासा हुआ है कि यह घोटाला केवल मध्यप्रदेश तक सीमित नहीं है। कोलकाता आधारित एक सिंडिकेट देश के विभिन्न राज्यों में इसी तरह जाली बैंक गारंटी के जरिए सरकारी ठेके हासिल कर रहा था। एजेंसी का कहना है कि जांच जारी है और आने वाले दिनों में और गिरफ्तारियां हो सकती हैं। सीबीआई यह भी पता लगाने में जुटी है कि किन सरकारी अधिकारियों और बैंक कर्मियों की मिलीभगत से इतना बड़ा फर्जीवाड़ा संभव हो पाया।

भोपाल नगर निगम परिषद की बैठक में देरी पर कांग्रेस पार्षदों ने जताया विरोध, मानसून से पहले समाधान की उठी मांग

भोपाल। शुक्रवार को कांग्रेस पार्षदों ने संभागायुक्त संजीव सिंह को ज्ञापन सौंपा और भोपाल नगर निगम (बीएमसी) की परिषद की बैठक तत्काल बुलाने की मांग की। पार्षदों ने बताया कि 3 जून को होने वाली अगली बैठक न तो आयोजित की गई और न ही इसके स्थगन को लेकर कोई स्पष्टीकरण दिया गया, जिससे जनप्रतिनिधियों में नाराजगी है। नगर निगम नियमों के अनुसार, परिषद की बैठक हर दो महीने में कम से कम एक बार अनिवार्य है। पिछली बैठक 3 अप्रैल को हुई थी, जिसमें वार्षिक बजट पारित किया गया था और अगली बैठक 3 जून को निर्धारित थी। नेता प्रतिपक्ष (एलओपी) शबिस्ता जाकी के नेतृत्व में पार्षदों ने शहर में लगातार हो रही भारी बारिश के कारण जलभराव, जल निकासी की खराब व्यवस्था और अन्य नागरिक समस्याओं की ओर ध्यान दिलाया। जाकी ने कहा, “जनहित के मुद्दों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। परिषद की बैठक बुलाना अब और टालना ठीक नहीं है।” सूत्रों के अनुसार, बैठक में देरी का एक कारण औपचारिक एजेंडे का अभाव और मेयर-इन-काउंसिल (MIC) की अनियमित बैठकें हैं। एमआईसी की आखिरी बैठक 9 जून को हुई थी, जबकि इससे पहले की बैठकें अगस्त, सितंबर और दिसंबर 2024 में बुलाई गई थीं। जाकी ने महापौर पर संशोधित बजट को लेकर सवाल उठाते हुए आरोप लगाया कि नगर निगम के विभिन्न विभागों में 600 से अधिक फाइलें लंबित हैं। उन्होंने कहा, “अगर बजट में कोई गलती हुई है, तो उसे स्वीकारने में हिचक क्यों? जन समस्याओं के समाधान के लिए परिषद की बैठक आवश्यक है।” नगर निगम अध्यक्ष किशन सूर्यवंशी ने भी बैठक बुलाने पर जोर दिया और कहा, “एजेंडा न हो तब भी परिषद को बुलाया जा सकता है ताकि मानसून से पहले जलभराव, क्षतिग्रस्त सड़कें और नालों की सफाई जैसे मुद्दों पर चर्चा की जा सके।” उन्होंने कहा कि पार्षदों को अपने वार्ड की समस्याओं को रखने के लिए मंच मिलना चाहिए, इससे पहले कि बारिश से हालात और बिगड़ जाएं।

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